कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना, जिन्हें आमतौर पर केवल कमलेश्वर के नाम से जाना जाता है, हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के एक प्रमुख स्तंभ थे। उनका जन्म 6 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ था, और उनका निधन 27 जनवरी 2007 को फ़रीदाबाद, हरियाणा में हुआ। कमलेश्वर को हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन के एक महत्वपूर्ण प्रतिनिधि के रूप में याद किया जाता है, और वे राजेंद्र यादव तथा मोहन राकेश के साथ नई कहानी त्रिकोण के एक प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।
कमलेश्वर का जीवन आरंभ से ही संघर्षपूर्ण रहा। उनके पिता का निधन तब हो गया जब वे केवल तीन साल के थे, और वे सात भाइयों में से पांच को कम उम्र में खो चुके थे। उनके किशोरावस्था के दौरान ही उन्हें क्रांतिकारी समाजवादी दल में संदेशवाहक के रूप में शामिल कर लिया गया था, जहाँ वे क्रांतिकारियों के पत्र और संदेश एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाते थे। इस अनुभव ने उनके जीवन और दृष्टिकोण पर गहरा प्रभाव डाला। कमलेश्वर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्री प्राप्त की, जो उस समय साहित्य और राजनीति का प्रमुख केंद्र था।
कमलेश्वर ने साहित्य के साथ-साथ पत्रकारिता में भी अपने आप को स्थापित किया। उन्होंने “नई कहानियाँ,” “सारिका,” “गंगा,” और “दैनिक जागरण” जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। उनके लेखन में सामाजिक और राजनीतिक विषयों की प्रमुखता रही, और उन्होंने साहित्य में अपनी कहानियों, उपन्यासों, संस्मरणों, और पत्रकारिता के माध्यम से अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
कमलेश्वर ने हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने स्क्रिप्ट राइटर और संवाद लेखक के रूप में कई फिल्मों और टीवी श्रृंखलाओं के लिए काम किया। इसके अलावा, वे दूरदर्शन के महानिदेशक भी रहे, जहाँ उन्होंने “बंद फाइल” और “जलता सवाल” जैसे वृत्तचित्रों का लेखन और निर्देशन किया।
कमलेश्वर ने कई प्रसिद्ध कहानियाँ और उपन्यास लिखे, जिनमें से कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं:
कहानी संग्रह:
उपन्यास:
उनके उपन्यास “कितने पाकिस्तान” ने उन्हें विशेष ख्याति दिलाई, और इसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह उपन्यास विभाजन और सांप्रदायिकता के जटिल सवालों पर आधारित है और इसे हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति माना जाता है।
कमलेश्वर को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 2005 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने फिल्मों और टेलीविजन के माध्यम से भी अपनी छाप छोड़ी, जहाँ उनकी पटकथाएँ और टीवी सीरियल्स बहुत लोकप्रिय हुए।
कमलेश्वर का निधन 74 वर्ष की आयु में 27 जनवरी 2007 को फ़रीदाबाद में हुआ। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने हिंदी साहित्य, पत्रकारिता, फिल्म और टेलीविजन में अपने बहुमूल्य योगदान से एक अमिट छाप छोड़ी।
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