शिष्टाचार कहानी का कथासार : भीष्म साहनी

शिष्टाचार कहानी भीष्म साहनी hindi stack | Bhisham Sahni

‘शिष्टाचार’ कहानी का कथासार

‘भीष्म साहनी’ हिंदी सहित्य के क्षेत्र में प्रगतिशील रचनाकार हैं। यूँ तो साहित्य की हर विधा में उनका समान अधिकार है लेकिन सही ढंग से साहनी जी के साहित्य सृजन पर यदि विचार किया जाए तो, वे सर्वप्रथम कहानीकार के रूप में ही पाठकों के सामने आते है। एक सशक्त कथाकार के रूप में उन्हें हिंदी कहानी के क्षेत्र में ख्याति मिली। ‘नामवर सिंह’ के शब्दों में कहें तो-

“मेरी कुछ ऐसी धारणा है कि अपने उपन्यासों की अपेक्षा भीष्मजी अपनी कहानियों के लिए ज्यादा याद किए जायेंगे। प्रेमचंद की तरह उनकी सर्जनात्मक प्रतिभा कहानी विधा के अंदर अधिक कलात्मकता के साथ व्यक्त हुई है।” (छबि संग्रह : भीष्म साहनी बाग 4)

भीष्म जी के लेखन का प्रस्थान बिंदु ही ‘निली आँखे’ इस कहानी से हुआ और उनकी लगभग 125 काहानियाँ है। इन कहानियों को उन्होंने भाग्य रेखा, पहला पाठ, भटकती राख, पटरियाँ  निशाचर आदि जैसे 12 कहानी संग्रहों में विभाजित किया है। इन सभी कहानी संग्रहों में उन्होंने नगर बोध, राजनीति, विभाजन, संप्रदायिक भेदभाव, संघर्ष, प्रेम, परिवारिक समस्याओं और जिजीविषा आदि कई विषयों को अपनी कहानियों में आधार बनाया है। जिससे यह पता चलता है कि साहनी का कथा संसार कितना समृद्ध एवं व्यापक है। साथ ही इनकी कहानियों में यत्र-तत्र व्यंग्य का भी उत्कृष्ट रूप देखा जा सकता है। हम यह भी कह सकते हैं कि ‘भीष्म साहनी’ जी की कहानियों में हमे वह सब कुछ मिलता है, जिसे हम देखते और भोगते हैं। जीवन के विविध पहलूओं एवं भंगिमाओं को सहजता से रच कर वह मर्म को छू लेते हैं। उनकी एक ऐसी ही प्रसिद्ध कहानी है ‘शिष्टाचार’ जो उनके प्रथम कहानी संग्रह ‘भाग्य रेखा’ (1953 ई.) में छपी थी। जिसमें सभ्य, शिष्ट और सुसंस्कृत माने जाने वाले मध्यवर्ग और अशिष्ट, असभ्य और असंस्कृत करार दिये जाने वाले निम्नवर्ग की कहानी है।

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बडों के छोटेपन और छोटों के बड़ेपन को उभारने वाली इस कहानी में मध्यवर्ग की संकीर्ण मानसिकता को व्यक्त किया गया है। साथ ही यह कहानी मध्यमवर्गीय लोंगो के खोखले शिष्टाचार और निम्नवर्गीय लोगों के शिष्टाचार में अंतर बताती है। इस कहानी में ‘बाबु रामगोपाल’ उनकी ‘श्रीमतीऔर नौकर ‘हेतु’ यह तीन पात्र हैं। उच्चवर्गीय बाबु रामगोपाल अपने घर काम के लिए नौकर रखते है। उसको तनखा केवल बारह रूपये दी जाती है। जिस समय हेतु घर आता है। उसी समय श्रीमती कहती हैं

“जो यहाँ चोरी चकारी की तो सीधा हवालात में भिजवा दूँगी। यहाँ काम करना है तो पाई-पाई का हिसाब ठिक से देना होंगा।” (भाग्य रेखा: भीष्म साहनी ; पृष्ठ-32)

केवल इतना ही नहीं श्रीमती हेतु को बैठे-बैठे सर से पाँव तक देखती है और कहती हैं- “यह बन मानुस कहाँ से पकड़ लाये हो ? इससे मैं काम लुंगी या इसे लोगों से छिपाती फिरूंगी।” (भाग्य रेखा: भीष्म साहनी ; पृष्ठ-32) यहाँ पर उच्चवर्गीय लोंगो का खोखलापन श्रीमती के इस संवाद से स्प्ष्ट होता है। अपना स्थान समाज में व्यवस्थित रखने के लिए हम कभी-कभी अपने आपको भी छिपाने की कोशीश करते हैं।

हेतु घर में काम करने लगा। वह जैसा कुरूप था वैसा गवार भी। उसके हाथों से गिलास टूटने लगे, परदों पर धब्बे पड़ने लगे और घर के काम भी अस्तव्यस्त रहने लगे। ऐसे में ही 3 महिने बीत गये। श्रीमती तथा श्रीमान के यहाँ पर उनके बालक का मुँडन संस्कार का आयोजन किया जाता है। उस समय श्रीमान और श्रीमती अपने काम में व्यस्त रहने लगे। जिसके कारण सब चाबियाँ हेतु के हाथ आ जाती हैं। समारोह चल रहा है। मित्र मंडली आ जा रही है। उस समय हेतु के गाँव से चिठ्ठी आती है कि उसके लड़के की मृत्यु हुयी है। हेतु दुःखी होता है और श्रीमान से छुट्टी माँगता है।

श्रीमान हेतु की मानसिकता को समझने की कोशिश नहीं करते बल्कि डाटते हुए कहते हैं- “छुट्टी दें दे ! आज के दिन तुम्हें छुट्टी दें दे ?… जाओ अपना काम देखों। छुट्टी वुट्टी नहीँ मिल सकती। मेहमान खाना खाने वाले हैं और इसे घर जाना है।” (भाग्य रेखा: भीष्म साहनी ; पृष्ठ-34) श्रीमान बेकाबु होकर उसे पिटते है, श्रीमती भी उसपर अपने हाथ ठंडे करती है।

हेतु व्याकुल होकर, साहब मुझे जाने दो, मैं जल्दी लौट आऊंगा, मुझे काम है। तब दोस्तों के कहने पर उसे श्रीमान छोडते है। श्रीमान दूसरा नौकर भी रख लेते है। कुछ दिनों के बाद हेतु श्रीमान को दिखाई देता है उस समय श्रीमान उससे मिलते है और जानना चाहते है कि क्या काम था ? उस समय हेतु बार-बार अपने आँसुओं को रोकने का प्रयास करता है। पर असंभव हो जाता है। हेतु लड़खड़ाती आवाज में कहता है उसका बच्चा मर गया था , श्रीमान जानना चाहते है कि उस समय उसने क्यों नही बताया, तब हेतु कहता है,-

“खुशी वाले घर में यह नहीँ कहतें। हमारे घर मेँ इसे बुरा मानते हैं।”(भाग्य रेखा: भीष्म साहनी ; पृष्ठ-35)

हेतु की यह बाते सुनकर श्रीमान हैरान तथा स्तब्ध होकर गंवार को देखते रह जाते हैं और हमें हेतु के इस वाक्य से उसकी शिस्टाचारिता और बड़प्पन दिखाई देता है। इस प्रकारसाहनी जी प्रस्तूत कहानी में उच्चवर्गीय लोंगो का खोखलापन तथा निम्नवर्गीय नौकर की नैतिक निष्ठा को व्यक्त किया है।


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