छायावाद
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छायावाद
हिंदी कविता के क्षेत्र में ‘भक्तिकाल’ के बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध शब्द अगर कोई है तो वह है ‘छायावाद’ और आज की कविता के अनेक वादों में से सबसे अधिक विवादित वाद भी ‘छायावाद’ ही है। यह सच है कि ‘छायावाद’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले मुकुटधर पांडे ने ‘श्री शारदा’ नामक पत्रिका के 1920 ई. के चार अंकों में ‘हिंदी में छायावाद’ शीर्षक पर व्यंग्यात्मक लेख लिखकर विस्तृत और गहन विवेचन प्रस्तुत किया था और यहीं से ‘छायावाद’ आज तक साहित्य जगत में एक बड़ा चर्चा का विषय बना हुआ है। तभी तो इतने वर्षों के व्यतीत हो जाने के बाद भी साहित्य का जिज्ञासु यह समझने के लिए कितना उत्सुक नजर आता है की छायावाद क्या है ? विद्वानों ने ‘छायावाद’ को विभिन्न दृष्टिकोणों से परिभाषित करने का प्रयास किया है, जिसमें से कुछ छायावाद की परिभाषाएँ इस प्रकार हैं:
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