रागदरबारी उपन्यास में व्यंग्य पर प्रकाश डालिए | Hindi stack
रागदरबारी उपन्यास में व्यंग्य पर प्रकाश डालिए | Hindi stack

श्रीलाल शुक्ल हिंदी साहित्य के कालजयी रचनाकार है और “रागदरबारी” उनकी कालजयी रचना है हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों की श्रखंला में रागदरबारी का महत्वपूर्ण स्थान है। शिवपालगंज श्रीलाल शुक्ल जी के प्रसिद्ध उपन्यास रागदरबारी का गाँव है। उपन्यास की कथा का सम्पूर्ण तानाबाना शिवपालगंज को लेकर ही बुना गया है। शिवपालगंज उत्तरप्रदेश में स्थित एक गाँव है जिसमें इंटर काँलिज, कोआँपरेटिव सोसायट,स्वास्थ्यकेंद्र, बैंक, डाकघर, थाना, कचहरी, तहसील आदि वह सब है जो एक छोटे शहर या कस्बे में होता है। इस प्रकार देखें तो शिवपालगंज केवल गाँव नहीं, गाँव और शहर का मिला जुला रूप है।

भारत गाँवों का देश है और शिवपालगंज देश के सारे गाँवों का प्रतीक है। इस दृष्टि से शिवपालगंज केवल एक गाँव नहीं है, यह समस्त भारत का प्रतीक है।धर्म, अर्थ, शिक्षा, राजनीति किसी भी क्षेत्र में जो कुछ भी होता है या हो रहा है वह सब शिवपालगंज में होता है। उपन्यासकार के शब्दों में,”जो यहाँ है वह सब जगह है,जो यहाँ नहीं है वह कहीं नहीं है।”

गोपाल राय लिखते है

“रागदरबारी उत्तरप्रदेश पूर्वांचल गाँव शिवपालगंज की कहानी है,उस गाँव की जिन्दगी का दस्तावेज जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्राम विकास और गरीबी घटनाओं के आकर्षक नारों के बबावजूद घिसट रही है।” 

हिंदी साहित्य में ‘राग दरबारी’ जैसी अनेक कालजयी रचनाएं लिखकर मशहूर होने वाले साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल व्यक्ति, समाज और तंत्र की विकृतियों को व्यंग्य के मुहावरे के माध्यम से उद्घाटित करने में माहिर थे। राजनीतिक तंत्र की विकृति और भ्रष्टाचार के साथ आजाद भारत का निम्न मध्य वर्ग उनके लेखन का प्रमुख विषय रहा है, जिनकी जड़ें होती तो गांवों में हैं लेकिन जो परिस्थितियों की मार से पीडि़त हो खाने- कमाने के लिए छोटे- बड़े कस्बों अथवा शहरों में चला आता है। श्रीलाल जी ने अपनी रचनाओं में गाँवों की स्थिति का इतना यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है कि पाठक पढ़ते हुए स्वयं को उस कथा का एक पात्र मानने लगता है। श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ को साठ के दशक से लेकर अब तक का एक रचनात्मक विस्फोट माना जाता है।

रागदरबारी एक ऐसा उपन्यास है जिसमें व्यंग्य अपनी सम्पूर्णता और विस्तार के साथ देश,समाज,और व्यक्ति से जुड़ी समस्याओं का यथार्थ और प्रभावशाली चित्र उकेरता है। स्वातंत्र्योत्तर भारत मे आएविचार, वैभिन्नय, विसंगति, भ्रष्टाचार, अन्याय, विवश्ता, अमानुषिकता, नैराश्य, संस्कारहीनता, चुनाव मे हेरा फेरी, तिकड़म-बाजी, रिश्तखोरी, भाई-भतीजावाद, गुटबन्दी, चोरी-डकैती आदि पर क्रूर व्यंग्य किया है।

कुंवरनारायाण के शब्दों मे :-

“रागदरबारी निश्चय ही हिन्दी साहित्य की उन श्रेष्ठतम उपलब्धियों में से है।जिसमें व्यंग्य प्रधान उपन्यासों को शास्त्रीय ऊँचाइयों तक पहुँचाया है..एक गंभीर व्यंग्य रचना के रूप में रागदरबारी का मन पर गहरा प्रभाव छूटता है।”

हिंदी में व्यग्यं उपन्यास की शुरुआत एक तरह से श्रीलाल शुक्ल के ही रागदरबारी उपन्यास से मानी जाती है।रागदरबारी उपन्यास व्यंग्य मात्र न होकर जीवन से सत्य से,अपने आप से जींवत और प्रत्यक्ष साक्षात्कार है। राग दरबारी उपन्यास गाँव की जिंदगी का दस्तावेज है।सामाजिक, राजनीतिक दुराचारों और यथार्थ के अंतर्विरोधी पक्षों के वर्णन में तीक्ष्ण संवेदना और व्यंग्यात्मक की पैनी धार को प्रौढ़ रूप से विकसित करने कीविशिष्टता ‘रागदरबारी’ की अपनी मौलिकता है।

अकेला रागदरबारी अपने आप में पूरे देश के तथा कथ्य विकास,सामंतशाही का भेद,सपना और बदलते ग्रामीण आचरण का निचोड़ रस है।यह व्यंग्य प्रधान उपन्यास शास्त्रीय ऊँचाइयों तक पहुँचकर एक गंभीर व्यंग्य के रूप में सबको आकर्षित करता है।”

राग दरबारी उपन्यासकार स्वातंत्र्य पूर्व की। राजनीति से स्वातंत्र्योत्तर राजनीति के विभिन्न रूपों को विभिन्न प्रकार से दिखाता है।ग्रामीण परिवेश की राजनीति स्वतंत्रता के बाद किस प्रकार परिर्वतन लाती है।और एक विकृत और विरूप समाज की तस्वीरें पाठकों के सम्मुख प्रकट करता है। स्वतंत्रता पूर्व राष्ट्रप्रेम निष्काम था, उसमें कोई स्वहित भाव न था, वह भावना स्वतंत्रता प्राप्त होते ही सत्ता-प्राप्ति की प्रतिस्पर्धा में परिवर्तित हो गई। नैतिकता और चारित्रिकता अनैतिकता में बदल गई।

राजनीति मे अवसरवादिता का इतना अधिक प्रचलन बढ़ गया कि जब भी किसी नेता को अपना कहीं भी लाभ दृष्टिगत होता है,वह उसीओर चल देता है, उसी गुट में सम्मिलित होजाताहै।अवसरवादिता और स्वार्थलिप्सा में डूबे ऐसे ही लोगों के कारण आज का राजनैतिक परिवेश और राजनीति न केवल दूषित हुई है बल्कि अध:पतित भी हो गई है। वैद्य जी जो कि इस उपन्यास के सर्वाधिक शाक्तिशाली पात्र है ,ऐसे ही एक अवसरवादी नेता है जो पराधीन भारत में अंग्रेजों के भक्त थे और स्वाधीन भारत में देशी अधिकारियों के अटल भक्त है और इसी भक्ति और चाटुकारिता के बल पर वे शिवपालगंज गाँव के एकछत्र नेता के रूप में कामयाब रहते है।राजनीति में अवसरवादिकता का भूत सवार होने से जीवन मूल्यों का लक्ष्य बिगड़कर बिखरता दिखाई देता हैं।

‘पदलोलुपता’ समाज में इस कदर घर कर गई है कि अयोग्य और असहज होते हुए भी व्यक्ति पद छोड़ना नहीं चाहता।सत्ता सुख की चाह में न केवल वह नवीन प्रतिभाओं का शोषण करता है,बल्कि देशोन्नति के पथ में बाधक भी बनता है।यह पदलोलुपता इस हद तक बढ़ गई है कि वैद्य जी को आज का युवा वर्ग निकम्मा नज़र आता है। यद्दपि सत्तालोलुप नेताओं की तरह वे भी बूढ़े होने के उपरांत जोंक की तरह सत्ता से चिपके है। 

शुक्ल जी टिप्पणी करते है

हर बड़े राजनितिज्ञ की तरह राजनीति से नफ़रत करते थे।राजनितिज्ञों का मज़ाक उड़ाते थे।गाँधी जी की तरह अपनी राजनीति पार्टी में उन्होंने कोई पद नहीं लिया था,क्योंकि वे वहाँ नये खून को प्रोत्साहित करना चाहते थे पर कोआँपरेटिव और काँलिज के मामलों में लोगों ने उन्हें मजबूर कर दिया था और उन्होंने मजबूर होना स्वीकार कर लिया था।”

रागदरबारी उपन्यास में भ्रष्टाचार का नैतिक और सामाजिक रूप से उचित ठहराने वाली निम्न पूँजीवादी मानसिकता को अनेक घटना प्रंसगों के माध्यम से प्रतिबिंबित किया है।वैद्य जी प्रिसिंपल ,रामधीन हों या पुलिस और तहसील कर्मचारी नैतिकता सत्य और धर्म के अपने अपने यार है।

भ्रष्टाचार को एक नैतिक मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित करने में वैद्य जी की सबसे अह्म भूमिका है वैद्य जी के जीवन व्यवहार का हर एक पहलू एक खास़ तरह की सामाजिक विसंगति को उजागर करता है।

” इन्सानियत का प्रयोग शिवपालगंज में उसी तरह चुस्ती और चालाकी का लक्षण माना जाता था जिस तरह राजनीति में नैतिकता का।” ( पृ.सं 83) 

रागदरबारी उपन्यास में शिक्षा संस्थानों और वर्तमान शिक्षा प्रणाली की विसंगतियों का व्यापक रूप में अभिव्यक्त हुई है।वास्तव में किसी भी राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था में वहाँ की राष्ट्रीय चेतना की आत्मा का वास होता है।इन शिक्षा संस्थानों में ही भावी नेतृत्व विकसित होता है।लेकिन स्वातंत्र्योत्तर भारत में शिक्षा के स्तर पर ग्रमीण और नगरीय परिवेश का भेद रहा।शौक्षिणिक सुविधाओं का जितना विकास नगरों में हुआ,उतना गाँवों मे नही हुआ।

अत: कहा जा सकता है  श्रीलाल शुक्ल ने रागदरबारी उपन्यास में व्यंग्य को आधार बनाकर देश,समाज और राजनैतिक नेताओं व व्यक्तियों से जुड़ी समस्याओं का यथार्थ और प्रभावशाली चित्रण किया है।

निष्कर्ष :-

रागदरबारी मे चित्रित स्वातंत्र्योत्तर भारत का यथार्थ सामाजिक राजनीतिक परिवेश मे व्याप्त है श्रीलाल शुक्ल ने राजनीति, समाज, अर्थव्यवस्था, शिक्षा,साहित्य,संस्कृति, आदि का ऐसा कोई पहलू नह़ीं छोड़ा जो राग दरबारी मे व्यंग्यात्मक रूप में व्यक्त न हुआ हो।

संदर्भ ग्रंथ  :-

  1. रागदरबारी- श्रीलाल शुक्ल , राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली 
  2. रागदरबारी का महत्व:-डाँ मधुरेश,लोकभारती प्रकाशन 2015 
  3. रागदरबारी आलोचना की फ्रांस-रेखा अवस्थी,राजकमल प्रकाशन 2014 

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