रीतिकाल के नामकरण की समस्या 

रीतिकाल के नामकरण की समस्या | Hindi Stack

हिंदी साहित्य का ‘रीतिकाल’ भी आदिकाल के समान नामकरण की दृष्टि से साहित्य जगत में पर्याप्त मतभेदों, विवादों और विभिन्नताओं का काल रहा है। हिंदी सहित्यितिहास लेखन की सुधीर्ग परम्परा का मूल्यांकन करने के पश्चात यह मालूमात होता है कि विभिन्न विद्वानों ने ‘रीतिकाल’ को अपनी अलग-अलग आलोचनात्म दृष्टि से देखा व समझा और आपने-अपने हिसाब से उसकी मुख्य प्रवृत्तियों के आधार पर इसका उचित नामकरण करने का प्रयास किया। जिसके कारण ‘रीतिकाल’ को भी कई नामों से जाना जाने लगा। इस लेख के माध्यम से आज हम ‘रीतिकाल’ के अब तक हुए प्रमुख सभी नामो पर विस्तार से चर्चा करेंगे:

हिंदी सहित्यितिहास के प्रारंभिक इतिहासकारों में सर्वप्रथम डॉ• जार्ज ग्रियर्सन ने रीतिकाल के नामकरण पर विचार किया और इस युग की कविता को ‘द आर्स पोयटिका’ अर्थात् ‘काव्यकला’ नाम दिया। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘द मार्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान’ के सातवें अध्याय को काव्यकला के नाम से संकेत करते हुए कहा कि 16वीं शताब्दी के अंत से लेकर पूरी 17वीं शताब्दी तक का समय जो कि इतिहास की दृष्टि से मुगल साम्राज्य के उत्थान का समय था, उसमें काव्यकला प्रस्तुत हुई है-

“The end of the sixteen century and the whole of the seventeenth century, a period corresponding closely with the supermacy of the Mohghal empire, presents a remarkable array of poetics talent.”

डॉ. जार्ज ग्रियर्सन ने 16वीं और 17वीं शताब्दी की हिंदी रचनाओं की तुलना अंग्रेजी साहित्य के इतिहास में प्रसिद्ध आगस्टन-युग से करके उसे गौरवान्वित कर दिया है। वैसे ग्रियर्सन ने इस युग की हिंदी की रचनाओं को ‘दि आर्स पोयटिका’ कहा है। यह लैटिन भाषा का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ काव्य कला होता है। हिंदी साहित्य के परवर्ती इतिहासकारों ने बहुत कुछ डॉ. ग्रियर्सन के मत से ही कहीं न कहीं प्रभाव ग्रहण किया है। जैसे डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ ने रीतिकाल का नाम कला काल माना है वे कहते हैं 

‘‘ ‘कला काल’ से तात्पर्य उस काल से है, जिसमें हिंदी क्षेत्र में काव्य को कलापूर्ण किया गया, अर्थात् उसमें काव्य के चमत्कृत और चातुर्यपूर्ण गुणों को ध्यान में रखकर रचनाएँ की गई और साथ ही कला के नियमोंपनियमों से संबंध रखने वाले रीति या लक्षण ग्रंथों की रचना हुई।”

यह नामकरण भी तर्कसंगत नहीं है क्योंकि रीतिकालीन कविता का भावपक्ष उतना ही संपन्न एवं समृद्ध है, जितना कलापक्ष और इस नाम के कारण रीतिकालीन काव्य के केवल बाह्य पक्ष पर ही प्रकाश पड़ता है।  डॉ. भगीरथ मिश्र के मत अनुसार कहना ही अधिक उचित होगा कि “कला काल कहने से कवियों की रसिकता की उपेक्षा होती है।”

एडमिन रेवलेशन 1917 में हिंदी साहित्य का इतिहास अंग्रेजी में लिखा उसका नाम है स्केच ऑफ हिंदी लिटरेचर इस पुस्तक में स्पष्ट रूप से सॉल्व और शताब्दी के हिंदी काव्य को एल्बो रेटेड पीरियड कहा है उनकी दृष्टि में इस काल की कविता उस प्रकार की है जिस प्रकार की कविता अंग्रेजी के कवि टेनिस की है इस काव्य को कलात्मक एवं अर्थ है वही धरना हिंदी के इस युग में दृष्टिगत होती है इस संबंध में वे कहते हैं

नाम देने का तो इसका अच्छा आरंभ किया है परंतु इस युग में व्याप्त काव्य चेतना का अच्छा प्रतिनिधित्व यह का विस्तार दिया गया हो नहीं करता इस युग में था और लक्षण ग्रंथ निर्माण कार्य की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए इसलिए उसका नामकरण प्रेरणादायक तो है पर उसे स्वीकार करना अधिक सुविधाजनक नहीं होता है।

श्रृंगारकाल – पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र और डॉ. श्यामसुंदर दास ‘सरीखे ‘ जैसे विद्वानों ने श्रृंगार तत्व की प्रधानता के आधार पर उत्तर मध्यकाल को ‘श्रृंगारकाल’ नाम की संज्ञा प्रदान की है। यह नामकरण उपयुक्त नहीं है। इसकी दो वजह हैं पहली तो यह कि इस युग में श्रृंगार रस के अंगों का विशद् विवेचन नहीं हुआ है और दूसरी बात यह कि इस नामकरण से वीर आदि अन्य रसों का बोध नहीं होता है। जिसके कारण इस नामकरण में समस्त रीतिवादी काव्य-प्रवृत्तियों का बोध नहीं हो पाता है।

अलंकृतकाल – मिश्रबंधुओं ने हिंदी-साहित्य के उत्तर मध्यकाल के लिए ‘अलंकृत-काल’ की संज्ञा दी है। उन्होंने यह नामकरण अलंकार-ग्रंथों की प्रधानता के आधार पर किया है। यह नामकरण भी उपयुक्त एवं सटीक नहीं है, क्योंकि

  1. इस नामकरण से इस काल की समस्त चेतना उजागर नहीं होती।
  2. इस युग की कविता में अलंकारों की प्रधानता है, किंतु अलंकार इस युग की कविता की आत्मा नहीं है और अलंकारों का सोदाहरण विवेचन भी संपूर्ण रूप से इस काल में नहीं हुआ है।

कलाकाल – रीतिकालीन काव्य में कलापक्ष की प्रधानता के कारण डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ ने इस काल को ‘कलाकाल’ नामकरण से नवाजा है।

रीतिकाल – हिंदी के सप्रसिद्ध इतिहासकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी-साहित्य के उत्तरमध्यकाल के लिए ‘रीतिकाल’ नामकरण किया है, अधिकांशतः आलोचकों द्वारा मान्य और परंपरा से स्वीकृत है। रीतिकाल नामकरण उपयुक्त है क्योंकि

  1. रीतिकाल में रीतिसिद्ध, रीतिबद्ध और रीतिमुक्त ये जो 3 काव्य धाराएँ प्रवाहित हुईं, उसमें ‘रीति’ शब्द सर्वत्र सुरक्षित है।
  2. ‘रीतिकाल’ कहने से रीतिकाल की कोई भी महत्वपूर्ण विशेषता उपेक्षित नहीं होती और प्रमुख प्रवृत्ति का बोध होता है।
  3. रीतिकाल के अधिकांश कवियों ने रीति अर्थात् रस, नायिका-भेद, नख-शिख वर्णन, अलंकार, छंद इत्यादि काव्यांगों के आधार पर काव्य का सृजन किया इसलिए ‘रीतिकाल’ नामकरण उपयुक्त है।

2 users like this article.

अगर आपके प्रश्नों का उत्तर यहाँ नहीं है तो आप इस बटन पर क्लिक करके अपना प्रश्न पूछ सकते हैं

Follow Hindistack.com on Google News to receive the latest news about Hindi Exam, UPSC, UGC Net Hindi, Hindi Notes and Hindi solve paper etc.

Related Articles

रीतिकाल की प्रमुख परिस्थितियों का विवेचन कीजिए। | Hindi Stack

रीतिकाल की परिस्थितियों का विवेचन

Check Today's Live 🟡
Gold Rate in India

Get accurate, live gold prices instantly
See Rates

Popular Posts

Latest Posts

1
फोर्ट विलियम कॉलेज और हिंदी गद्य का विकास
2
नाटक और एकांकी में अंतर | Differences Between Natak and Ekanki
3
अकाल और उसके बाद कविता की मूल संवेदना
4
अकाल और उसके बाद कविता की व्याख्या
5
गीतिकाव्य के प्रमुख तत्वों के आधार पर विद्यापति के गीतों का मूल्यांकन
6
आत्मकथा की विशेषताएँ | Characteristics of Autobiography in Hindi

Tags