भारत में ‘प्रगतिशील लेखक संघ‘ का प्रथम अधिवेशन ‘प्रेमचंद’ की अध्यक्षता में सन् 1936 में लखनऊ में हुआ था। सभापति के रूप में ‘प्रेमचंद’ ने इस सम्मेलन में दिये अपने भाषण में व्यक्तिवादी, रूढ़िवादी और संकीर्ण सौंदर्य-दृष्टि रखने वाले उन साहित्यकारों पर प्रहार करते हुए उन्हें आहवान किया कि वे आज से सक्रिय और जीवंत साहित्य की रचना करें। प्रेमचंद के इस भाषण को साहित्य जगत में ‘प्रगतिवाद का घोषणापत्र’ भी माना जाता है जिसको हम प्रेमचंद के प्रसिद्ध निबंध ‘साहित्य का उद्देश्य‘ में देख सकते हैं। इस निबंध के कुछ महत्वपूर्ण कथन इस प्रकार है :
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4 Responses
Nice sir
bahut hi good jankari hai
Good jankari sir
👍👍 bahut badiya